अरविंद सोसाइटी राजस्थान ने अपने सभी कार्यक्रम रद्द किए

अरविन्द सोसायटी राजस्थान के सचिव सूर्य प्रताप सिंह राजावत ने बताया कि कोरोना महामारी में व्यक्तिगत एवं सामूहिक दायित्व को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के सभी केन्द्रों में मार्च में होने वाले सभी कार्यक्रमों को रद्द कर दिया गया है। श्री राजावत ने कहा कि आजकल कोरोना वायरस से सम्बन्धित वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर सोश्यल मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इन सभी पक्षों को पढ़कर किसी भी व्यक्ति को यह निर्णय लेने में कठिनाई हो रही है कि किस पहलु को प्राथमिकता देवें। यह प्रश्न सभी के सामने है। वैज्ञानिक पहलु है जिसको आधार बनाकर सभी देशों की सरकारों एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाऐं दिशा-निर्देश जारी कर रही है। सभी से अपेक्षा की जाती है। दिशा-निर्देशों की पालना सभी सुनिश्चित करें। भारत में सभी नागरिकों से यह अपेक्षा एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
राजावत ने आध्यात्मिक का महामारी पर कहा कि भारत में आध्यात्मिक ज्ञान की कमी नहीं है। भारत में मनुष्य की संरचना में शरीर को नश्वर एवं आत्मा को अनश्वर माना गया है एवं आध्यात्मिक दृष्टि से अलग-अलग ऋषियों एवं शास्त्रों को उदृत कर साधकों एवं योग मार्ग पर चल रहे जिज्ञासुओं को यह समझा जा रहा है कि आत्मनिष्ठ, आत्मावान एवं योगयुक्त मनुष्यों को कोरोना जैसी महामारी से डरने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि कोरोना जैसे वायरस योगपथ पर उन्हीं पर आक्रमण करते है, जो कि भय से ग्रसित है। ईश्वर में आस्था एवं विश्वास रखने वालों को ऐसे वायरस से घबराने की आवश्यकता नहीं। यह आध्यात्मिक सत्य है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। व्यक्तिगत रूप से सभी साधक योगयुक्त, भय से मुक्त एवं ईश्वर में पूर्ण आस्था रखते हुए वायरस के आक्रमण से बच सकते है। यह सिद्धांत आध्यात्मिक समूह पर भी लागू होता है। इसमें कोई न तो भ्रम है न ही इससे इंकार किया जा सकता है। समग्रता से श्रीमद्भागवतगीता के अध्यन करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि लोक संग्रह (अध्याय 3.20) को देखते हुए कर्म करने को ही योग्य एवं उचित बताया है। श्रेष्ठ पुरूष के आचरण (अध्याय 3.21) के प्रभाव के बारे में गीता कहती है कि श्रेष्ठ पुरूष जो-जो आचरण करता है अन्य पुरूष भी वैसा ही आचरण करते है। वे जो कुछ प्रमाण कर देता है समस्त मनुष्य समुदाय उसी की तरह जीवन जीने की कोशिश करता है।
भारत की सरकार द्वारा वायरस से बचने के लिए सभी से अपील की गई है एवं सभी राज्य सरकारें भी वायरस के कारण पैदा हुई स्थिति को देखते हुए महामारी की घोषणा कर चुकी है। नागरिकों द्वारा उक्त दिशा-निर्देशों की पालना नहीं करना गलत उदाहरण एवं गलत संदेश बनता है। व्यक्तिगत एवं आंतरिक रूप से आध्यात्मिक सिद्धांतों की पालना करते हुए सभी आध्यात्मिक संस्थाओं को राष्ट्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देशों की पालना में आचरण करना चाहिए। यह न केवल इन परिस्थितियों में राष्ट्रधर्म है बल्कि आज का युग धर्म भी है।


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