काशी में राक्षस नाम संवत्सर का प्रतिपादन*

 वाराणसी (श्री काशी जी)

.      *काशी में राक्षस नाम संवत्सर का प्रतिपादन*


       *संवत्सर आनयन के 31 सिद्धांत-सूत्रों का काशी धरा पर हुआ विवेचन* 

       *श्री काशी के विद्वद् वरिष्ठ आचार्यों ने पं. कौशल दत्त शर्मा के शोधप्रबन्ध "संवत्सरमुपास्महे" की प्रकाश्यमान सामग्री का अवलोकन कर श्री शर्मा का किया साधुवाद एवं सम्मान*

      सम्पूर्ण भारतवर्ष के पञ्चाङ्गों में इस वर्ष के प्रारम्भ दिन से चल रहे संवत्सर नाम निर्धारण के वैमत्य पर एकरूपता स्थापित करने के लिए वेद-शास्त्र और ज्योतिषीय सिद्धान्त ग्रन्थों का शोधपरक अवगाहन अत्यावश्यक है। इस विषय पर पं. कौशल दत्त शर्मा नीम का थाना-राजस्थान का शोधकार्य अत्यन्त सराहनीय एवं अनुकरणीय है। यह बात विवादित और अनिर्णित विषयों पर सटीक शास्त्रीय निर्णय देने वाली महानगरी काशी जी की पावन धरा के हनुमान घाट स्थित श्री पट्टाभिराम शास्त्री वेद मीमांसा अध्ययन केंद्र  के सभागार में आयोजित संगोष्ठी में *"संवत्सर नाम निर्धारण मीमांसा"* पर ज्येष्ठ-श्रेष्ठ विद्वत् सम्मान समारोह में मञ्चस्थ मुख्य अतिथि श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय वेरावल के पुर्व कुलपति प्रो. श्री गोपबंधु जी मिश्र, अध्यक्षता कर रहे महर्षि सान्दीपनि वेद प्रतिष्ठान बनारस के पूर्व सचिव प्रो. श्री श्री किशोर जी मिश्र, सारस्वत अतिथि श्री लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. व अखिल भारतीय संस्कृत भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गोपाल शर्मोपाध्याय जी, विशिष्ट अतिथि काशी परम्परा के वैदिक कर्मकांड चूडान्त विद्वान् श्री बंशीधर संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी के प्राचार्यचर डा. बलराम जी पाण्डेय आदि ने समवेत भाव से अपने अपने आशीर्वादात्मक मंगलमयी उद्बोधन में कही। 

       *पं. कौशल दत्त शर्मा व्याख्याता ज्योतिष शास्त्र राजकीय संस्कृत महाविद्यालय नीमकाथाना राजस्थान ने "संवत्सर नाम निर्धारण" पर अपने शोधप्रबन्ध "संवत्सरमुपास्महे" की पाण्डुलिपि के चार स्वकीय सिद्धान्तों के साथ २७ ज्योतिषशास्त्रीय सिद्धान्तों को बाबा विश्वनाथ की पावन धरा पर सदन के समक्ष रखते हुए दृढ़तापूर्वक कहा कि संवत् २०७८ राक्षस नामाब्द ही है। ज्योतिषशास्त्र का एक भी गणितीय सिद्धांत "राक्षस नाम संवत्सर" को नहीं नकार सकता है। इस वर्ष "आनन्द" नामक संवत्सर मानना शास्त्रों की शत प्रतिशत अवमानना है। और अगला संवत् २०७९ नल-अनल ही होगा राक्षस नहीं। ज्योतिषशास्त्र के पंचसिद्धान्तों के साथ प्राचीन और वर्तमान सूर्यसिद्धान्त दोनों अपौरुषेय वेदपुरुष ग्रन्थ हैं। बार्हस्पत्य संवत्सर आनयन में सूर्य और गुरु के भगणों की ही मुख्य भूमिका है।*

       *सूर्यसिद्धान्तीय गणित महायुगादि है, एक महायुग में सूर्य भगण ४३२०००० और गुरु के भगण ३६४२२० × १२ = ४३७०६४० मानववर्ष है। अर्थात् ४३२०००० सौरवर्षों में ५०६४० बार बार्हस्पत्य संवत्सर लुप्त होता है। अर्थात् ४३२०००० ÷ ५०६४० = ८५ वर्ष ०३ मास २० दिन ५४ घटी ०१ पल ४२ विपलादि बाद एक संवत्सर का लोप हो जाता है। या यों कहें ५०६४० ÷ ४३२०००० = ०११७२२२२२२२२ अर्थात् ०४ दिन १३ घटी १२ पलादि प्रति वार्षिक मध्यमगति से एक प्रभवादि संवत्सर समायोजित-लुप्त होता रहता है। अतः इस गणना से संवत् २०७४ में ही विरोधकृत् संवत्सर का लोप हो चुका है। अब आगे ८५ वर्ष ३ माह बाद ही लोप होगा।*

      पुनश्च श्री शर्मा ने कहा कि अन्य सिद्धान्त कल्पादि महायुगादि कलिगताब्दादि शकारम्भादि से कहे हैं। *धातव्य है कि आज के पंचांग निर्माताओं में सबसे अधिक मान्यता सूर्यसिद्धांत से भिन्न आर्यभट्ट प्रथम के गुरु भगण ३६४२२४ की है। बृहत् संहिता, मकरन्द प्रकाशादि करण ग्रन्थ भी इसी सिद्धान्त पर संवत्सरों का नामकरण निर्धारित करते हैं।* इस सिद्धांत से एक महायुग में गुरु भगण

३६४२२४ × १२ = ४३७०६८८ हैं जो ४३२०००० वर्ष में ५०६८८ बार समायोजित होते हुए लुप्त संवत्सर कहे जाते हैं। अर्थात् ४३२०००० ÷ ५०६८८ = ८५ वर्ष ०२ मास २१ दिन ४९ घटी ०५ पलादि बाद एक संवत्सर का लोप हो जाता है। या यों कहें ५०६८८ ÷ ४३२०००० = .०११७३३३३३३३३३ अर्थात् ०४ दिन १३ घटी २६ पलादि की वार्षिक मध्यम गति से प्रतिवर्ष प्रभवादि संवत्सर लुप्त होता रहता है। इस सिद्धांत से संवत् २०७१ में ही प्लवङ्ग नामक संवत्सर लुप्त हो चुका है। और अब आगे ८५ वर्ष २ माह २१ दिन बाद संवत्सर लुप्त होगा। 

        *प्रतिवर्ष चान्द्रवर्ष से प्रभावी हुआ नवसंवत्सर मेषार्क के दिन से भोग्य माना जाता है। और आगे के वर्षों में ०४ दिन १३ घट्यादि न्यून होता रहता है। सरल सी बात है जिस वर्ष आने वाले संवत्सर का भोग्य काल ०४ दिन १३ घट्यादि से न्यून होगा उस वर्ष निश्चित रूप से अग्रिम संवत्सर को समायोजित करने के लिए लुप्त करना होगा। जो अब इन दोनों सिद्धान्तों से ८० - ८५ वर्ष बाद ही सम्भव है।*

       गुरु उदय कृतिकादि नक्षत्र में होने से भी बृहस्पति के महाकार्तिकादि मास कहे गए हैं। ३६१ दिन से अधिक दिन में एक गुरु मास और ४३३२ दिन से अधिक समय में एक गुरुवर्ष पूर्ण होता है। एक सौर मास में तीन गुरुमास का स्पर्श क्षयमास की भांति लुप्त होने से हेय माना गया है।

       बीस पच्चीस सिद्धान्त प्राय: ३६५ सही एक बटा चार दिन से न्यूनाधिक वर्षमान मानते हैं। वर्षमान ज्योतिषीय सिद्धान्त ग्रन्थों में *भभ्रम* या *भूभ्रम* से आनीत सूर्य सावन दिनों में सूर्यभगण का भाग देने से आता है। अभी मान्यता प्राप्त सौरपक्षीय वर्षमान १/१५/३१/३० प्राचीन मूल सूर्यसिद्धान्त का है सम्प्रति प्रचलित  सूर्यसिद्धान्त का नहीं है। और दृक् पक्षीय वर्षमान १/१५/२२/५६/५७ है। यहां एक को ३६५ दिन ग्रहण करें। *जितने सिद्धान्त उतने वर्षमान* विभिन्न वर्षमानों से संवत्सर के भुक्त भोग्य भी भिन्न भिन्न होंगे।

     *इसके साथ ही सर्वत्र मान्यता प्राप्त सूत्र-   अभीष्ट शकाब्द × २२  + ४२९१ ÷ १८७५  की उपपत्ति के साथ सूत्र में ग्रहण की गई तीनों संख्याओं के महत्त्व को उद्घाटित करते हुए संवत्सर के भुक्त भोग्य आनयन को भी स्पष्ट किया।* 

       इन दोनों पद्धतियों से प्रथम शकाब्द से लेकर शक संवत् ३१०० तक कब-कब लुप्त संवत्सर आए और आएंगे को भी स्पष्ट किया। तथा *लाखों करोड़ों वर्ष पहले और भविष्य में लाखों करोड़ों वर्ष बाद संवत्सर के भुक्त भोग्य की अद्भुत अभूतपूर्व समय सारिणी को भी सार्वजनिक किया।*

        मंचस्थ महामनाओं ने वर्तमान में आनन्द/राक्षस नामाब्द संवत्सर वैमत्य में श्री कौशल दत्त शर्मा के "संवत्सरमुपास्महे" शोधग्रन्थ की पाण्डुलिपि के ३१ गणितीय सिद्धांतों के अनुसार इस वर्ष राक्षस नाम संवत्सर ही है के अवलोकन और प्रस्तुतिकरण के आधार पर इस ग्रन्थ को शीघ्र प्रकाशन हेतु शास्त्र मर्यादा के संरक्षण और आस्थावान सनातनियों के ज्योतिष शास्त्र के प्रति अप्रतीम विश्वास के लिए परम उपयोगी बताया। ग्रन्थ की उपादेयता एवं ग्राह्यता को समय की आवश्यकता बताया। 

      शनिवार को सुसम्पन्न  विशेष समारोह में युवाचार्यों द्वारा चारों वेदों के वैदिक मंगलाचरण किए गए। समारोह में श्री सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के सामवेद विभागाध्यक्ष डा. विजय जी शर्मा, श्री नंदलाल बाजोरिया  संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य श्री गोपाल चंद्र जी मिश्र, वेदोन्नयन केंद्र व पट्टाभिराम शास्त्री संस्थान के प्रमुख प्रबुद्ध आचार्यों की सौम्य व गरिमामयी उपस्थिति भी रही। पं. श्री कृष्णानंद जी उपाध्याय ने सभा का संचालन किया।

      वहीं श्री काशी विद्वत् परिषद् एवं परिव्राजकाचार्य  श्री रामभद्राचार्य जी महाराज के आनन्द नामाब्द संवत्सर मतानुयायी डॉ. श्री बलराम जी पांडेय ने परिषदानुगमन करते हुए अपना "आनन्द" पक्ष रखा तो संचालक पं. श्री कृष्णानंद जी उपाध्याय ने काशी विद्वत् परिषद् के आनन्द नामाब्द सिद्धांत की तात्विक आलोचना करते हुये परिषद् के निर्णय को भ्रामक बताया। अन्त में प्रो. बलराम जी पाण्डेय ने कि मैं काशी विद्वत् परिषद् और ऋषिकेश पंचांग के साथ ही रहूंगा निर्णय चाहे कुछ भी हों। पुनः श्री कौशल दत्त शर्म महोदय ने कल्पारम्भ से आज तक के अनेकों उदाहरण राक्षस संवत्सर के पक्ष में रखे। प्रमाण स्वरूप राष्ट्रकूट राजा के प्राप्त ताम्रपत्र शाके ७२६ में सुभानु संवत्सर को भी सिद्ध कर दिखाया। 

     कल्पतरु ज्योतिष शोध संस्थान ने काशी परम्परा के अनुरूप समुपस्थित मंचस्थ प्रमुख आचार्यों, ज्येष्ठ-श्रेष्ठ विद्वानों और अतिथियों का विशेष सत्कार सम्मान किया गया। श्री कौशल दत्त शर्मा के साथ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कान्ता शर्मा और आत्मज प्रणव प्रताप शर्मा का भी आशीर्वादात्मक स्नेहाभिषिञ्चित सम्मान किया गया।

     काशी के प्रसिद्ध देवायतनों के कृपा प्रसाद के साथ श्री करपात्री धाम, संस्कृत विश्वविद्यालय के मीमांसा प्रो. श्री कमलाकान्त जी त्रिपाठी, भारतीय संस्कृति के अतुलनीय उपासक संपोषक काशी के एकमात्र अग्गिहोत्री प्रो. श्री ज्ञानेन्द्र जी सापकोटा व डॉ. विजय जी शर्मा सामवेद विभाग आदि विद्वानों  के सानिध्य में भी इस विषय पर विशद् परिचर्चा सम्पन्न हुई।

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