सिरोही में नेशनल फार्मास्यूटिकल ऐजुकेशन एण्ड रिसर्च इंस्टियुट की स्थापना हो - सांसद डांगी

 सिरोही में नेशनल फार्मास्यूटिकल ऐजुकेशन एण्ड रिसर्च इंस्टियुट की स्थापना हो - सांसद डांगी



आबूरोड। नेशनल फार्मास्यूटिकल ऐजुकेशन एण्ड रिसर्च इंस्टियुट (संशोधन) बिल, 2021, जिसके तहत मोहाली के अतिरिक्त छह अन्य नेशनल फार्मास्यूटिकल ऐजुकेशन एण्ड रिसर्च इंस्टियुटस (1) अहमदाबाद, (2) हाजीपुर, (3) हैदराबाद, (4) कोलकाता, (5) गुवाहाटी, और (6) रायबरेली को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित किया गया है। सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में 1998 के एक्ट में संशोधन कर नई धारा 33 (ए) जोड कर संस्थान को केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य किया गया है।

डांगी ने बिल पर बोलते हुऐ सरकार कि मंशा पर सवाल उठाये और कहा कि वर्ष 2012 से राजस्थान के झालावाड़ में नेशनल फार्मास्यूटिकल ऐजुकेशन एण्ड रिसर्च इंस्टियुट बनाने का प्रस्ताव लंबित है परन्तु वित्त मंत्रालय के अंतर्गत इकोनॉमिक फाइनांस कमिटी (ईएफसी) ने इसका कैंपस बनाने के लिए अनुमोदन प्रक्रियाओं में उलझाया हुआ है। उन्होने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अत्यन्त संवेदनशिल हैं। और जब भी उनके समक्ष छंजपवदंस च्ींतउंबमनजपबंस प्देजपजनजम स्थापित किये जाने के लिये राजस्थान राज्य में जमीन की मांग की जायेगी तो वे इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु एक क्षण भी गवांये बिना राज्य में जमीन आवंटन के लिये तुरन्त स्वीकृति प्रदान करेंगे। जब भी अन्य राज्यों में इसकी शुरूआत करें तो शुरूआत राजस्थान से करें जिससे राजस्थान के अति पिछड़े जिले जैसे पाली, सिरोही में भी विकास के साथ-साथ वहां रोजगार का नव सृजन भी हो सके।

संशोधन विधेयक की धारा 33 (ए) में कहा गया है कि एक संस्थान अधिनियम के कुशल प्रशासन के लिए केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य होगा।

यह प्रावधान इन संस्थानों के स्वायत्त कामकाज का उल्लंघन कर सकता है। इसलिए सरकार को उन क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए जहां वह निर्देश देगी और उन क्षेत्रों को जहां वह हस्तक्षेप नहीं करेगी, ताकि संस्थानों की स्वायत्तता की स्थिति जस की तस रह सके और ये उच्च संस्थान को देश में शिक्षा और अनुसंधान के विकास के लिए नीतियां बनाने और प्रभावी प्रशासन चलाने के लिए स्वतंत्र रह सकें।

सांसद डांगी ने सदन को अवगत कराया कि 1998 के अधिनियम की धारा 4 (3) (एम) में कहा गया है कि तीन प्रख्यात सार्वजनिक व्यक्ति या सामाजिक कार्यकर्ता जिनमें से एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होगा, जिसे आगंतुक द्वारा पैनल में से नामित किया जाएगा। जबकी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के ऐसे प्रतिनिधित्व को 2021 के संशोधन विधेयक से हटा दिया गया है। इस तरह की चूक पर पुनर्विचार कर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के कम से कम एक व्यक्ति को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में शामिल किया जाना चाहिए।

डांगी ने सदन को याद दिलाया कि 2014 के संसदीय चुनाव के लिए भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र के अनुसार शिक्षा को अंधविश्वास, घृणा और हिंसा से मुक्त और राष्ट्रीय, सामाजिक और धार्मिक एकता को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण अमीपबसम बनना चाहिए।श् परन्तु अब, चार साल बाद, ऐसा लगता है कि या तो इन शब्दों का भाजपा के शब्दकोश में एक अलग अर्थ है या ये भी बाकी सब की तरह ‘जुमले‘ थे।

पिछले सात वर्षों में हमारे शैक्षणिक संस्थानों -श्रछन्ए भ्ब्न्ए थ्ज्प्प्ए प्प्ज्. मद्रासंदक ठभ्न् . बनारस पर सत्तावादी हमले हुए हैं - जिसका उद्देश्य लोकतांत्रिक संस्कृति को कुचलना और असंतोष की हर एक आवाज को नष्ट करना है। जब हम शिक्षा क्षेत्र में एनडीए सरकार के सात वर्षों की ‘‘उपलब्धियां‘‘ तलाश करते हैं तो पाते हैं कि एनडीए सरकार की कार्यषैली लोकतंत्र पर हमला मात्र है।

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने शिक्षा के व्यावसायीकरण, केंद्रीकरण और सांप्रदायिकरण की नीतियों का आक्रामक रूप से अनुसरण किया है। यह पिछली यूपीए सरकार की नव-उदारवादी शैक्षिक नीतियों को समाप्त कर रहा है, जिसका उद्देश्य शिक्षा क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करना और निजी पूंजी के लिए अधिकतम लाभ के रास्ते बढ़ाना है।

एनडीए सरकार ने फंड में कटौती कर विश्वविद्यालयों में शोध के मूल सिद्धांतों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। न्ळब् गजट अधिसूचना, 2015 के बाद श्रछन् और अन्य विश्वविद्यालयों में सीट कटौती के मुद्दे ने अनुसंधान को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। यह अनुसंधान में अवसरों को कम करने के लिए एक स्पष्ट रणनीति है। यह एक अच्छी तरह से स्थापित तथ्य है कि विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या में थ्ंबनसजल के पद खाली पड़े हैं, जिससे अनुसंधान के अवसर और कम हो रहे हैं।

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