चुनावी समर में गरमाया कचरी पावर प्लांट का मुद्दा

 चुनावी समर में गरमाया कचरी पावर प्लांट का मुद्दा


सुभाष तिवारी लखनऊ

करछना -  विधानसभा चुनाव की बिगुल बजने के बाद मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे ही सभी दल के प्रत्याशी राजनैतिक मुद्दों को लेकर मतदाताओं को लुभाने के लिए जोर आजमाइश कर रहे रहे हैं। चुनाव के सरगर्मी के बीच कचरी पावर प्लांट पर भी सियासत के गलियारों में सुर्खियों में है । सभी राजनीतिक दलों के द्वारा सरकार बनने पर कचरी में पावर प्लांट लगवा कर करछना क्षेत्र में विकास की धारा बहाने की बात कह रहे हैं। बता दें कि पूर्व की बसपा सरकार में बिजली पावर प्लांट लगाने के लिए करछना क्षेत्र के कचरी गांव समेत 8 गांव के किसानों की  जमीन को अधिकार किया गया। लेकिन बाद में सरकार ने पावर प्लांट के निर्माण की जिम्मेदारी जेपी समूह को सौंप दिया । जमीन अधिग्रहण के दौरान  किसानों को मुआवजे के अलावा ‌कई मूलभूत सुविधाएं देने का आश्वासन दिया गया ।यहां के लोगों को लगने लगा कि पावर प्लांट लगने से रोजगार के साथ क्षेत्र में तेजी से विकास होगा। किसानों की अधिग्रहण की गई जमीन का दो चरणों में कुल 2286 किसानों को 3 लाख रुपए प्रति बीघा की दर से  मुआवजा भुगतान किया गया। किसानों की संतुष्टि पर पावर का प्लांट निर्माण कार्य शुरू करने के लिए भूमि पूजन की पूरे विधि विधान से तैयारियां की गई। भूमि पूजन स्थल पर जेपी समूह के अधिकारी समेत भारी संख्या में किसान भी पहुंचे। लेकिन उसी बीच जेपी समूह के अधिकारियों से कुछ किसानों ने मुआवजे के अलावा दी जाने वाली अन्य सुविधाओं के बारे में  पूछताछ किया गया। लेकिन भूमि पूजन करने पहुंचे अधिकारियों ने अन्य सुविधा देने से मना करते हुए प्राइवेट कंपनी होने की बात कहीं गई ।


झूठा आश्वासन बना विरोध का कारण


सैकड़ों किसानों ने विभिन्न मांगों को लेकर धरना शुरू कर दिया। दिन प्रतिदिन किसानों का संगठन मजबूत होता गया। इस दौरान विपक्षी दल के कई नेताओं समेत वर्तमान भाजपा सरकार के सूर्य प्रताप शाही, अनुप्रिया पटेल, रीता बहुगुणा जोशी, नंद गोपाल गुप्ता समेत कई राजनीतिक दल के नेता भी किसानों के समर्थन  में उतर आए। उसी बीच कुछ किसानों ने कोर्ट में रिट दाखिल कर दी। धीरे धीरे पावर प्लांट के विरोध में सियासत शुरू हो गई। जो धरना प्रदर्शन से एक बड़ा आंदोलन में बदल गया । सरकार व किसानों के बीच कई बार वार्ता हुई लेकिन हर बार वार्ता विफल रहा है।बसपा सरकार का शासनकाल पूरा होने के बाद  सपा सरकार बनी। इस दौरान किसानों का आंदोलन जारी रहा। सपा सरकार बनने के बाद किसानों को न्याय की उम्मीदें जगी। सपा सरकार गठन होने के बाद तत्काल सरकार ने कचरी पावर प्लांट के मुद्दे को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल कर इसे आगे बढ़ाने का काम किया।सपा सरकार  बनने के बाद किसान व सरकार के बीच पुनः वार्ता हुई लेकिन बात नहीं बनी। किसानों के लगातार आंदोलन व विरोध के चलते जेपी समूह ने पावर प्लांट पर काम करने से हाथ खींच लिया। उस दौरान जिलाधिकारी प्रयागराज रहे कौशल राज ने शक्ति अपनाते हुए प्रदर्शन कर रहे किसानों पर कार्रवाई की। जिसमें कई किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद कई बटालियन पीएसी फोर्स, आरपीएफ, व पुलिस फोर्स लगाकर अधिग्रहण की गई जमीन पर सरकार द्वारा बाउंड्री वॉल कराने का काम शुरू कर दिया गया। लेकिन कार्यदाई संस्था का भुगतान न किए जाने से कार्य अधर में लटक गया। वर्तमान समय में ज्यादातर किसान अपनी जमीन पर कई तरह के पारंपरिक व व्यवसाय खेती करना शुरू कर दिया है। जबकि कुछ हिस्सों में खेती का काम न होने से ऊसर बंजर में तब्दील हो रहा है।

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