नववर्ष के वासन्तिक नवरात्र
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 2 अप्रैल शनिवार को भारतीय चान्द्र संवत्सर का शुभारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्र स्थापना के लिए धर्म ग्रन्थों की दृष्टि से दिन के बारह बजे पूर्व का समय वसन्त ऋतु के नवरात्र स्थापना के लिए शुभ है। द्विस्वभाव मीन लग्न और मिथुन लग्न विशेष शुभ हैं। यह दिन-
1. विक्रमी संवत्सर- 2079
2. शालिवाहन शक संवत्- 1944
3. कलियुग प्रारम्भ संवत्- 5124
4. बार्हस्पत्य प्रभवादि संवत्सर नाम- नल
5. दक्षिण भारतीय प्रभवादि संवत्सर नाम- शुभकृत्
6. चैत्र शुक्ल वर्षप्रतिपदा
7. आदि सृष्टि के शुभारम्भ दिवस (ब्रह्मा जी ने इसी दिन सूर्योदय के समय सम्पूर्ण विश्व की रचना की थी)
8. सत्ययुगादि प्रारम्भ तिथि
9. नूतन ध्वजारोहण दिवस
10. कल्पादि आरम्भ तिथि
11. चार माह तक जलदान करने प्याऊ लगाने
12. पश्चिम दिशा में नये चांद का दर्शन
13. चैत्र वासन्तिक नवरात्र हेतु घट स्थापना
आदि के शुभारम्भ का विशेष दिन है।
02 अप्रैल शनिवार को गत राक्षस नाम संवत्सर के समापन के साथ नल नाम संवत्सर का आरम्भ हो रहा है। वाराही संहिता में "नल" को "अनल" भी कहा गया है।
शनिवार को वर्षारम्भ होने से इस वर्ष के राजा शनि महाराज होंगे जिससे न्यायप्रिय प्रधान शासक का सर्वत्र भयव्याप्त रहेगा। और गुरुवार को निरयन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करने से इस वर्ष के मन्त्री देवताओं के गुरु बृहस्पति होंगे जिससे धर्म की वृद्धि के साथ जनहित के कठोर निर्णय भी होंगे।
*02 अप्रैल शनिवार को प्रात: तैलाभ्यंग करके कल्पादि-सृष्ट्यादि से चले आ रहे ब्रह्माण्ड के सबसे पुराने कालमान "बार्हस्पत्य संवत्" जो प्रमाथी विजयादि प्रभवादि नामों से साठ प्रकार के हैं उन संवत्सरों में नल नाम के नये संवत्सर का अभिनन्दन वन्दन करें और नलसंवत् की फलश्रुति के साथ ब्रह्मा जी और वर्षेश शनि आदि की अर्चना करें।-
नलनाम संवत्सरम् उपास्महे
दुर्भिक्षं जायते घोरं राज्ञां दुर्मतिजं भयम्।
बालहानिश्च रोगेभ्यो नले ज्ञेया समन्तत:।।
संवत्सर अर्चना और संवत्सर फल श्रवण के बाद पंचांग व नूतन ध्वज पर पान पुष्प नैवेद्य अर्पित कर अपने भवन पर नूतन ध्वजारोहण करें।
नवरात्र स्थापना निर्णय-
शरद ऋतु और वर्ष के आरम्भ में मां दुर्गा की महापूजा करनी चाहिए।-
शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
इस दिन सौर या दृश्य सभी पंचांगों में लगभग दिन के बारह बजे तक प्रतिपदा तिथि है। नवरात्र के निमित्त कलश स्थापन न तो अमावास्या तिथि में करना चाहिए और न ही द्वितीया तिथि में करना चाहिए। प्रतिपदा क्षय हो तो अमायुत प्रतिपदा में कलश स्थापना करें। द्वितीया युक्त प्रतिपदा कलश स्थापन में अत्यन्त सुखद है।
अमायुक्ता न कर्त्तव्या प्रतिपच्चण्डिकार्चने।
मुहूर्तमात्रा कर्त्तव्या द्वितीयायां गुणान्विता।
ऊर्ध्वगामी प्रतिपदा एक मुहूर्त अर्थात् 48 मिनट भी हो तो शुभ है। चाहे पूजा संक्षेप में ही करनी पड़े। प्रतिपदा मलतिथि हो अर्थात् साठ घटी से अधिक होकर वृद्धि को प्राप्त हो रही हो तो दूसरी प्रतिपदा को चण्डिकार्चन न करें। तिथिवृद्धि एकादशी में ही शुभ होती है।यथा-
१. शुद्धे तिथौ प्रकर्त्तव्यं प्रतिपच्चोर्ध्वगामिनी।
२. अकर्मण्यं तिथिमलं विद्यादेकादशीं बिना।।
३. उदिते देवते भानौ द्विमुहूर्ता प्रशस्यते।
कलश स्थापन के दिन प्रतिपदा तिथि को चित्रानक्षत्र और वैधृतियोग दोनों का संजोग भी पीड़ा कारक है। संजोग से प्रतिपदा को पूरे दिन ही चित्रा-वैधृति का योग रहे तो अभिजित् मुहूर्त में देवी की आराधना करें। चित्रा-वैधृति का योग आश्विन नवरात्र में ही सम्भव है अन्यत्र कहीं नहीं। चैत्र नवरात्र में केवल वैधृति योग संभव है अतः अकेले वैधृति का कोई दोष नहीं है।यथा-
चित्रावैधृतियुक्तश्चेत् प्रतिपच्चण्डिकार्चने।
तयोरन्ते विधातव्यं कलशारोहणं गृहे।।
प्रतिपदा सारी तैयारी करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में घट स्थापन के साथ कलश पर पराम्बा भगवति जगदम्बा का आवाहन करना चाहिए।
अत्र देवीपूजैवप्रधानम्
देवी का आवाहन प्रतिपदा तिथि में ही करना हितकर है। द्विस्वभाव लग्न मिथुन, कन्या, धनु और मीन में देवी का आवाहन शुभ कहा गया है।
धर्म शास्त्रों की दृष्टि से सूर्योदय से मध्याह्न बारह बजे तक सारा समय कलश स्थापन और दुर्गा पूजा के लिए श्रेयस्कर है। फिर भी स्थिर लग्नों से बचना चाहिए
इसमें भी मीन लग्न का समय सूर्योदय 6.21 से 6.56 तक।
और
प्रात: 10.30 से प्रतिपदा तिथि के भोगमान दिन के बारह बजे तक द्विस्वभाव मिथुन लग्न का समय भी शुभ है।
क्योंकि बारह बजे बाद तो द्वितीया तिथि आ जाएगी। कुछ महाशय अभिजित् मुहूर्त लगा रहे हैं जो पूर्णतः शास्त्र विरुद्ध हैं। कुछ विद्वान् वैधृति योग का भय दिखा रहे हैं वह भी भ्रामक और शास्त्र विरुद्ध हैं।
*स्थिर लग्न वृष 08.33 से 10.29 तक रहेगा। इस समय के साथ सिंह, वृश्चिक, कुम्भ लग्न में, अपराह्न के समय और रात्री में देवी का आवाहन नवरात्रों में त्याज्य हैं।यथा-
नत्वपराह्ने न तु रात्रौ रात्रि में जपादि श्रेष्ठ है।
वैसे दिन के तीन या पांच भेद करके प्रातः काल में ही देवी का आवाहन और विसर्जन करना चाहिए।-
प्रातरावाहयेद्देवीं प्रातरेव प्रवेशयेत्।
प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसर्जयेत्।।
नवरात्र प्रयोग काम्य और नित्य हैं। कलिकाल में मिट्टी का कलश ग्राह्य है।
पूजा विधि:-
1.जयन्ती मंगला काली...
2. ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि नवाक्षर मंत्र
3. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नवार्ण मंत्र
से भगवती का ध्यान आवाहन एवं सामग्री अर्पण करनी चाहिए। पूजन कर्म में कुल परम्परा को विशेष महत्व देना चाहिए।
हम सृष्टि के शुभारम्भ दिवस पर आदिमाया विश्वेश्वरी और आदिपुरुष परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना भी करते हैं कि हे ईश्वर!! आप हम सबको कोरोना जैसी और भी मारक विभीषिकाओं से बचावें।
*मां भगवती आधिदैहिक आधिदैविक और आधिभौतिक तापत्रयों से मुक्ति प्रदान करने के साथ हम सबकी समस्त अभिलाषाओं को सद्य परिपूर्ण कर सपरिवार सुखी, सफल, समृद्ध, सुदीर्घ नैरुज्यमय यशस्वी जीवन" प्रदान करने की असीम कृपा करें।
जीवन्नरः भद्रशतानि पश्यति