काम के अभाव में श्रमिक घर पर पड़े हैं बेरोजगार : अयुब खान

 


 


माकपा ने गांव पहुंचकर प्रवासी श्रमिकों से मुलाकात की हालात का जायजा लिया।


 



 


LATEHAR चंदवा - भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (माकपा) के पूर्व जिला सचिव सह चतरा लोकसभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी अयुब खान, बैजनाथ ठाकुर, बीनोद उरांव, निरंजन ठाकुर, पूर्व पंचायत समिति सदस्य फहमीदा बीवी ने कामता पंचायत के भुसाढ़ गांव पहुंचकर प्रवासी मजदूरों से मुलाकात किया, उनके हालात की जानकारी ली, श्रमिक डब्लु उरांव, जगत उरांव ने बताया कि हम लोग बंम्बंई के कुरला में सरिया सेटरिंग का काम करते थे, लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया, घर आने के लिए अॉनलाईन रजिस्ट्रेशन कराए, फार्म भी भरा, पंद्रह दिन इंतजार किए ट्रेन का, कोई प्रबंध नहीं हुआ तो प्राईवेट ट्रक से पांच पांच हजार रुपए ट्रक मे किराया देकर घर लौटे हैं, संतोष लोहरा ने बताया कि दिल्ली में रहकर बिल्डिंग तोड़ने का कार्य करते थे, काम बंद हो गया तो मालिक से कहा घर जाएंगे मालिक ने अपनी गाड़ी से घर भेजवा दिया, बिजेंद्र उरांव ने बताया कि मैं बनारस में ईट भट्ठा मे काम करता था, काफी परेशानी हुई, निर्मल लोहरा ने बताया कि गुजरात के बालसाढ़ एरिया में रेलवे ब्रिज मे काम करते थे, कार्य बंद होने के बाद ठिकेदार छोड़ कर हम लोगों को भाग गए, खाना पिना नहीं मिल रहा था, खाने पीने के लिए कंम्पनी और सरकार ने कोई मदद नहीं की, चना खाकर रह रहे थे, कई पहर भूख भी रहना पड़ रहा था, दो सप्ताह कागज के लिए दौड़े, ट्रेन के लिए चार दिन दौड़े, इसके बाद झारखंड के लिए ट्रेन मिला तब घर आ आए, सभी श्रमिकों ने प्रदेश कि पीड़ा बताते हुए कहा कि अचानक कोरोना लॉकडाउन की घोषणा हुई, उस समय थोड़ी बहुत पैसे थे जो एक सप्ताह में खत्म हो गया, ठिकेदार भी हम लोगों को छोड़कर भाग गया, खाने पीने सहित कई समस्याएं खड़ी हो गई, एक तरफ कोरोना वायरस की डर तो दुसरी तरफ भूख का भय सताने लगी, ऐसे में गांव घर परिवार के पास जाने की चिंता सताने लगी, बहुत परेशानी के बाद घर लौटे तो यहां देख रहे हैं चारों तरफ बेरोजगारी फैली हुई है, गांव में कोई काम नहीं है, हांथ में फूटी कौड़ी भी नहीं है, परिवार का भरण - पोषण, बच्चों का पढ़ाई लिखाई और अन्य खर्च कहां से होगा कुछ समझ में नहीं आ रहा है, वे अपने भविष्य कैसे संवारेंगे यह चिंता उन्हें खाए जा रही है, मुसीबत में गांव घर ही काम आता है यह अब मजदूरों को महसूस हुआ है, लेकिन वे कहते हैं मजबूरी में काम के लिए बाहर जाना पड़ता है, वे कहते हैं कि लॉकडाउन में जो दिकतें झेलनी पड़ी उसे जिवन भर भुलाया नही जा सकता है, गांव में काम मिला तो कभी भी बाहर का रूख नहीं करेंगे, यहीं काम कर किसी तरह गुजारा करने की कोशिश करेंगे, बीवी बच्चों को छोड़कर किसी का मन नहीं करता है कि बाहर जाएं, हम लोगों को अपने ही इलाके में काम उपलब्ध कराया गया तो दूसरे प्रदेश काम के लिए जाने की जरूरत नहीं होती, इस लॉकडाउन के बीच प्रदेश में पहली बार भूखे पेट सोना पड़ा है, जिसे भूलाया नहीं जा सकता है, घर जब तक नहीं पहुंचे थे तबतक मौत का डर हर घड़ी सता रहा था, अब घर लौट चुके हैं तो हमें काफी सकुन है, कोरोना का डर ऐसा था कि प्रदेश में कोई दरवाजे पर रुकने नहीं देते थे, घर आने की चिंता में दर - दर भटक रहे थे, रात रात भर नींद नहीं आती थी, कोई वहां मदद करने वाला नहीं था, नेताओं ने कहा कि गांव में विकास का कार्य शुरू कर प्रवासी मजदूरों सहित यहां के कामगारों को तत्काल काम देने की आवश्यकता है, श्रमिक 14 दिनों की होम क्वारंटाईन की अवधि पुरी कर ली है, गांव में एक दर्जन से अधिक प्रवासी मजदूर हैं, जो काम के अभाव में बेरोजगार घर पर पड़े हुए हैं, माकपा ने तत्काल गांव में ही श्रमिकों को काम दिलाने की मांग उपायुक्त जिशान कमर, बीडीओ अरविंद कुमार से की है।


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