मजीठिया वेतनमान की लड़ाई, राजस्थान पत्रिका ने सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खाई।

 मजीठिया वेतनमान की लड़ाई, राजस्थान पत्रिका ने सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खाई।



- गैरकानूनी हैं धारा 20जे के तहत हासिल किए गए हस्ताक्षर

जयपुर. मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से इनकार कर चुके राजस्थान पत्रिका प्रबंधन को सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खानी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने पत्रिका प्रबंधन की उस विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया जिसे मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले के खिलाफ दायर किया गया था। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने उस 20 जे की डिक्लरेशन/अण्डरटेकिंग को गैरकानूनी बताया था जिसके तहत देश भर के मीडिया संस्थान पत्रकारों के हकों पर कुंडली मारकर बैठे थे।


- मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने गलत मानी थी 20जे अंडरटेकिंग


राजस्थान पत्रिका प्रा. लि. की कर्मचारी जूही गुप्ता के मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के 19 जून 2017 को जारी आदेश की व्याख्या करते हुए 20 जे के आधार पर कम वेतन को गलत माना था। आदेश में लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना 11- 11-2011 में बताए गए वेतनमान से कम किसी भी रूप में नहीं दिया जा सकता।


- धारा 12 के तहत कम नहीं किया जा सकता वेतनमान


इस आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर खण्डपीठ ने पत्रिका प्रबंधन की अपील पर सुनवाई के बाद माना कि उच्चतम न्यायालय के अभिषेक राजा के मामले में दिए गए निर्णय के पैरा 26 को पढ़ने के बाद शंका की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 2(ई), धारा 12 और धारा 16 को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से तय किया है कि धारा 12 के तहत जारी आदेश में बताए गए वेतनमान से कम वेतनमान नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तय किया था कि 20-जे को इसी के आलोक में पढ़ना चाहिए।


- पुनरीक्षण से एसएलपी तक सब खारिज


मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने आदेश में दोहराया कि संस्थान ने सिर्फ क्लाज 20 जे के आधार पर आपत्ति की थी और हमारे मत में 20 जे के आधार पर कम वेतन नहीं दिया जा सकता। ऐसे में संस्थान की इस आपत्ति का कानून की नजर में कोई महत्व नहीं है। खंडपीठ के इस फैसले के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका का भी वही हश्र हुआ जो अपील का हुआ और पुनरीक्षण याचिका भी 18 दिसम्बर 2020 को खारिज हो गई। इसके खिलाफ पत्रिका प्रबंधन विशेष अनुमति याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा, जहां विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया गया।

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