चातुर्मास्य देवशयन के मध्य देवताओं के करवट बदलने का दिन है जलझूलनी एकादशी

 *चातुर्मास्य देवशयन के मध्य देवताओं के करवट बदलने का दिन है जलझूलनी एकादशी


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      भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी जल झुलनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। इसे परिवर्तनी एकादशी भी कहते हैं। यह श्रवण नक्षत्र युक्त हो तो क्या कहना। दो महीने से सोए भगवान् श्रीहरि श्रवण नक्षत्र के मध्य में दांयी करवट बदलते हैं। जब भगवान विष्णु सोते हैं तो सब देवता भी सोते हैं और जब भगवान् श्रीहरि जागते हैं जो सब देवता भी जागते हैं। और आज जलझूलनी एकादशी को करवट बदलते हैं।

*श्रुतेश्च मध्ये परिवर्तमेति...*

      इस बार १७ सितंबर शुक्रवार को श्रवण नक्षत्र युक्त जलझूलनी एकादशी ही है, ऐसा श्रेष्ठ योग कई वर्षों बाद आता है। श्रवण नक्षत्र युक्त जलझूलनी एकादशी जनता जनार्दन के लिए बहुत ही अच्छा और शुभता का संकेत है। सर्वत्र शान्तिकारक और स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार माह भगवान् श्रीहरि क्षीर सागर में शेषशैय्या पर सोते हैं।

*क्षीराब्धौ शेषपर्यङ्के आषाढ्यां संविशेद्हरि:।*

*निद्रां त्यजति कार्तिक्यां तयोस्तं पूजयेत् सदा।*    

      स्मार्त मत से आषाढ़ शुक्ल एकादशी को और दाक्षिणात्य मत से द्वादशी को देवशयन कहा है। ऐसा ही कार्तिक शुक्ल एकादशी के विषय में ""देवप्रबोधन" एकादशी व द्वादशी को विहित है।

*स्मार्तमते एकादश्यामेव हरिशयनम् दाक्षिणात्यमते द्वादश्याम्*

       एकादशी व्रत को महिमास्वरुप "व्रतराज" कहा है। मानवमात्र को चाहिए कि सभी व्रतों को छोड़कर पहले एकादशी का व्रत करें। और कोई व्रत करें या न करें प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों का व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। हेमाद्रौ...

*एकादशीं परित्यज्य योऽन्यद्व्रतमुपासते।*

*स करस्थं महारत्नं त्यक्वा लोष्ठं हि याचते।*

*एकादश्युपवासी य: स धन्य: स च बुद्धिमान्।*

*न याति यातनां यामीमिति नो यमत: श्रुतम्।।*

     पौराणिक कथाओं के अनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और वृष लग्न में भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य हुए था। भाद्रपद शुक्ल एकादशी अर्थात् आज ही के दिन जल झूलनी एकादशी को भगवान श्री कृष्ण की माता यशोदा ने जल पूजन किया था। और उसी परम्परा को निभाते हुए आज भी सभी जच्चाएं इसी दिन जल पूजन करती हैं। और उसी परंपरा के अनुसार प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी को जल झुलनी एकादशी उत्सव पूरे विश्व में उत्साह से मनाया जाता है। आज के दिन सभी मंदिरों से भगवान के विग्रह को पालकी में विराजमान कर नगर भ्रमण कराते हैं। और जलाशयों में जल विहार करवाया जाता है। भगवान की पालकी के नीचे से निकलना, जल विहार एवं भगवान के दर्शन करना  अत्यंत शुभ और सुखद माना जाता है। यह पर्व प्रकृति की पूजा का पर्व कहें या आने वाली शरद ऋतु के स्वागतार्थ अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करने का पूर्व संकेत कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

           पं. कौशल दत्त शर्मा

           व्याख्याता ज्योतिष शास्त्र

           राजकीय संस्कृत महाविद्यालय

            नीमकाथाना राजस्थान

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