संसद में प्राईवेट मेम्बर बिल पेश
निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग को मिले आरक्षण - सांसद डांगी
आबूरोड (सिरोही) । राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने शुक्रवार को निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए अफरमेटिव एक्शन सकारात्मक कार्यवाही के संबंध में राज्यसभा में प्राईवेट मेम्बर विधेयक पेश किया है। शीतकालीन सत्र में इस विधेयक पर विस्तार से चर्चा होनी है। विधेयक का मसौदा सर्वाेच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति के. रामास्वामी द्वारा तैयार किया गया है। सांसद डांगी ने बताया कि प्रस्तावित बिल ‘निजीकरण के युग में डायर्वसिटी और अफरमेटिव एक्शन‘ में रोजगार के मामलों में भेदभाव को प्रतिबंधित करने और निजी क्षेत्र में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को व्यापार, वाणिज्य, अनुबंध, निर्माण, परिवहन व उपयोगिता सेवाओं में समान अवसर और सवार्ंगीण भागीदारी सुरक्षित किये जाने का प्रावधान है। ड्राफ्ट बिल पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा बैंगलोर में प्रायोजित कार्यशाला में देश के जाने माने कानूनविद, समाज शास्ति्रयों, उद्योगपतियो एवं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों से विस्तृत चर्चा की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि बिल के मसौदे के अनुसार भारत का संविधान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता पर जोर देता है और संविधान की प्रस्तावना सभी को सामाजिक-आर्थिक न्याय की गारंटी देती है।
सांसद डांगी ने बताया कि प्रस्तावित बिल के अनुसार संविधान में राज्य से यह अपेक्षा की गई है कि वह आर्थिक विषमताओं और आय में असमानता को कम करने का प्रयास करेगा और विभिन्न व्यवसायों में लगे व्यक्तियों और लोगों के समूहों के बीच स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को समाप्त करने का लगातार प्रयास करेगा। राज्य विशेष सावधानी के साथ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी सुरक्षा करेगा। डांगी ने बताया कि मौजूदा परिदृश्य में आर्थिक नीति में परिवर्तन के परिणामस्वरूप निजीकरण में वृद्धि, व्यापार उदारीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के क्रमिक विनिवेश के कारण, राज्य अब समाज के कमजोर वर्गों विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण की अपनी संवैधानिक और सामाजिक जिम्मेदारी सेपीछे हट रहा है। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र ने जब से सार्वजनिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में प्रवेश और संचालन प्राप्त किया है, इसने सामाजिक आर्थिक न्याय, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने केदायित्व के बिना अपने आर्थिक कायोर्ं का विस्तार किया है। श्री डांगी ने कहा कि अक्सर निजी क्षेत्र में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को समता का अवसर प्रदान करने में लापरवाही बरती जाती है।
उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र, कॉर्पोरेट क्षेत्र के उपक्रमों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में सामाजिक जिम्मेदारी और संवैधानिक जवाबदेही को लागू करने तथा राज्य की नीति को आगे बढाने के लिए यह कानून आवश्यक है।