सूर्य उपासना का महापर्व: मकर संक्रान्ति 14 जनवरी शुक्रवार 2022

 सूर्य उपासना का महापर्व: मकर संक्रान्ति

14 जनवरी शुक्रवार 2022


     दृश्य गणितीय पंचांग के अनुसार सूर्य धनु राशि से मकर राशि में 02.29 अपराह्न में प्रवेश करेगा जो संक्रमण का मुख्य काल है।    

     गौण पुण्य काल मुख्य संक्रमण काल से सोलह घटी पूर्व सोलह घटी पश्चात अर्थात् छह घंटे चौबीस मिनट पहले और छह घंटे चौबीस मिनट बाद तक माना जाता है। जो इस बार जयपुरीय पंचांगों में प्रात: 08.05 से सूर्यास्त तक  सामान्य पुण्य काल माना जाएगा। ब्रह्म सिद्धान्तकार ने साढ़े सोलह-साढ़े सोलह कुल तैंतीस घटी गौण पुण्य काल कहा है। 

    *सौरपक्षीय पंचांगों में सूर्य इसी दिन रात्रि आठ बजे बाद मकर राशि में प्रवेश करेंगे। तदनुसार ही पुण्यादिक कर्मों के लिए मुख्य एवं गौण काल निर्धारित किया जाना शास्त्रीय है।*

     प्रश्न पैदा होता है किसे सही माना जाए तो मेरी मान्यता है जो जिस पद्धति में विश्वास रखते हैं उन्हें वही मानना चाहिए। 

      *इस वैमत्य को समझने के लिए पहले हमें दृश्य वर्षमान 1/15/22/57 और सौरवर्षमान 1/15/31/30 को समझना होगा। और जब तक इनका अन्तर समझ में नहीं आएगा यह वैमत्य जन्म जन्मान्तर तक चलता ही रहेगा। वैसै सूर्यसिद्धान्त ज्योतिष का परम वेद है।*

     संक्रांति के दिन विशेष स्नान, पितृतर्पण, श्राद्ध, हवन, देव पूजा के साथ तिल, तैल से बने पदार्थ, ऊनी व सूती वस्त्र, कम्बल, खिचड़ी, भोजन, घी, लवण, भूमि, गाय, गायों के लिए चारा-पानी, गुड़, पंचगव्य तथा समर्थ हों तो सद्पात्र को दशविध महादान करने चाहिए‌ं। रात्रि में दान पुण्य वर्जित कहा भी गया है।

*रात्रौ स्नानं न कूर्वीत दानं चैव विशेषतः।*

*नैमित्तिकस्तु कुर्वीत स्नानं दानं च रात्रिषु।।*

और भी-

*विवाह व्रत संक्रान्ति प्रतिष्ठा ऋतु जन्मसु।*

*तथोपराग पातादौ स्नाने दाने निशा शुभा।।*     

     सूर्यादि ग्रहों का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश समय का नाम संक्रांति काल है। मेषादि कुल बारह राशियां हैं अतः सभी ग्रहों की १२-१२ संक्रान्तियां होती हैं।

*द्वादशैव समाख्याता: समा: संक्रान्तिकल्पना:।*

कल्पना:-भेदा:।

     सूर्यादि ग्रहों के राशि संक्रमण काल से पूर्वापर की कुछ घटिकाएं शुभकार्यों में वर्जित कही गई हैं। मु.चि.वि.प्र-

*देवद्वयंकर्तवोष्टाष्टौ नाड्याऽंका: खनृपा: क्रमात्।*

*वर्ज्या: सङ्क्रमणेऽर्कादे: प्रायोऽर्कस्यातिनिन्दिता:।।*

*अतिनिन्दितानाड्यऽतिपुण्यदा:।*

जबकि महर्षि जैमिनि ने

*नाड्यश्चतस्र: सपला: कुजस्य*

*बुधस्य तिस्रोमनव: पलानि*

.... किंचित्मात्र भेद कहा है।

     मु.चि. के अनुसार सूर्य-३३, चन्द्रमा-२, मंगल-९, बुध-६, बृहस्पति-८८, शुक्र-९ और शनि-१६० की घटियां विवाहादि शुभ कार्यों में वर्जित हैं यही घटियां संक्रान्ति का पुण्य काल कही गई हैं।

संक्रांतियों की विशेष संज्ञा-

मेष तुला (चरस्वभाव) राशियों की संक्रान्ति *विषुव संज्ञक।*

वृष सिंह वृश्चिक कुम्भ (स्थिरस्वभाव) राशियों की संक्रांति *विष्णुपद संज्ञक।*

मिथुन कन्या धनु मीन (द्विस्वभाव) राशियों की संक्रांति *षडशीतिमुख संज्ञक।*

कर्क और मकर (चरस्वभाव) राशियों की संक्रांति *अयन संज्ञक कही गयी हैं।*

जिनमें *कर्क संक्रान्ति दक्षिणायन संज्ञक* और *मकर संक्रान्ति उत्तरायण संज्ञक है।* 

     इस बार निरयन मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को ही है। चौदह जनवरी से भगवान भुवन भास्कर उत्तरायण गामी हो रहे हैं। सायन मकरार्क 21 दिसम्बर को होते हैं।

*अर्थात् भारत वर्ष के भौगोलिक स्वरूप के लिए मकर संक्रान्ति का पर्व महापर्व इसलिए भी है कि इस दिन से सूर्य दक्षिण दिशा से हमारी ओर उत्तर दिशा में आगमन की शुरुआत कर रहा है। इसलिए मकर संक्रान्ति पर्व सूर्य के विशेष आदर-सत्कार अगवानी का महापर्व कहा जाता है।*

     अब से ठीक छह माह बाद 16 जुलाई को सूर्य निरयन कर्क राशि में प्रवेश के साथ ही दक्षिणायन गामी होंगे और देव सो जाएंगे। और सायन पद्धति से 21 जून को दक्षिणायन होता है।

      सभी संक्रांतियों के पुण्य काल का विशेष महत्व है। संक्रमण का मुख्य काल अतिसूक्ष्म होने से अत्यल्प होता है अतः गौण काल ही श्रेयस्कर है। यथा-

*संक्रांतिसमय: सूक्ष्मो दुर्ज्ञेय: पिशितेक्षणै:।*

पिशितेक्षणै:- मनुष्यै:।

*अत: मुख्यकालानुपलब्धौ गौणकालेऽपि कार्यम्।।*

संक्रांति के दिन स्नान का विशेष महत्व है। स्नान कर सूर्य नमस्कार करने से शरीर अरोगता को प्राप्त होता है। स्वस्थ और यशस्वी जीवन चाहने वालों को नित्य प्रति स्नान ध्यान कर सूर्य की सविता शक्ति गायत्री का प्रणमन करना चाहिए। गायत्री आराधना ही सच्ची सूर्य आराधना है। स्नान का महत्व देखिए-

*रविसंक्रमणे पुण्ये न स्नायाद्यदि मानव:।*

*सप्तजन्मसु रोगी स्याद्दु:खभागी हि जायते।।* दान-पुण्य का महत्व देखिए-

*संक्रान्तौ यानि दत्तानि  हव्यकव्यानि दातृभि:।*

*तानि नित्यं ददात्यर्क: पुनर्जन्मनि जन्मनि।‌।*

बारह संक्रान्तियों की संज्ञा-

*षडशीत्याननं चापनृयुक्कन्याझषे भवेत्।*

*तुलाजौ विषुवं विष्णुपदं सिंहालिगोघटे।।*

     सम्पूर्ण काल चक्र सूर्यापेक्षी है। सौरमास ऋतु अयन वर्ष कुम्भपर्व मकरादि पर्व सभी  शास्त्रकारों ने सूर्य संक्रांति से सम्बद्ध माने हैं और मकरादि सभी सूर्य संक्रांतियों में स्नान दान पुण्य आदि के मुख्य काल का शास्त्रों में विशद् विवेचन भी किया है। साथ ही शुभ कार्यों में विशेष वर्जना भी कही है, अन्य ग्रहों की संक्रांति को साधारण माना है और सूर्य संक्रांति काल को अति निन्दित कहा है अतः पूर्वापर की तैंतीस घटी (प्रातः ०८.०५ से सूर्यास्त तक) पुण्य काल में तीर्थ स्नान दान पुण्य करके समय को अनुकूल बनाना चाहिए। 

     मध्यम और स्पष्ट सूर्य के आधार पर संक्रान्तियों के सायन और निरयन दो प्रकार विहित हैं। अयनांश युक्त स्पष्ट सूर्य की संक्रांति को सायन - दृश्य या चल सूर्य संक्रांति कहा गया है। सूर्य संक्रांति में स्पष्ट सूर्य ही ग्रहण करते हैं।धर्म दर्शन और ज्योतिष शास्त्रकारों ने अयनांश रहित निरयन सूर्य संक्रांति को ही शास्त्रीय मान कर तदनुसार शुभाशुभ फल कहे हैं।

     इस बार निरयन मकर संक्रमण रोहिणी नक्षत्र पर हो रहा है जिनका जन्म नक्षत्र रोहिणी है या जिनका प्रसिद्ध नाम ओ औ व वा वि वी वु वू ब बा बि बी बु बू अक्षरों पर है उन्हें एक सौर मास तक रोग क्लेश धनहानि के योग हैं। कुम्भ मिथुन और तुला राशि वालों को भी एक माह तक विशेष सावधानी रखनी चाहिए।

     जहां भी मकर संक्रान्ति के दिन वर्षा होती है उस क्षेत्र में अग्निभय रोगभय विस्फोट लूटपाट एवं वृष्टि से पीड़ा बढ़ती है।

       निरयन सूर्य संक्रांति के साथ सायन सूर्य संक्रांति का भी अपना महत्व है।       

*स्नानदानजपश्राद्धव्रतहोमादिकर्मसु।*

*सुकृतं चलसंक्रान्तावक्षयं पुरुषोऽश्नुते।।*

*सायनांशसंक्रान्ते: स्नानदानजपादावेव कार्यं न सर्वत्र।*

        मध्य रात्रि से पहले संक्रांति अरकती है तो पूर्व दिन में और मध्य रात्रि बाद सूर्य संक्रांति अरकती है तो अगले दिन दान-पुण्य का महत्व है। यदि मध्य रात्रि को अरकती है तो दोनों दिन ही संक्रान्ति का दान पुण्य शास्त्रों में विहित है।

*खेद का विषय है कि आज ग्रेगोरियो कलैंडर सांसारिक मान्यता प्राप्त वर्षमानक है। यह हमारे सूर्य की गति के आधार पर बने सौरवर्ष की ही प्रतिकृति है और हमने हमारी सौर पद्धति को शास्त्रों तक ही सीमित रखा सार्वजनिक नहीं किया। हमारा वर्षमान 1/15/31/30/ यही तो संदेश देता

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