विप्र समाज के सामूहिक यज्ञोपवित एवं सामूहिक विवाहोत्तर कार्यक्रम में उमड़ा विप्रजनों का सैलाब

 विप्र समाज के सामूहिक यज्ञोपवित एवं सामूहिक विवाहोत्तर कार्यक्रम में उमड़ा विप्रजनों का सैलाब



आबूरोड सिरोही। सिरणहवा पहाड की श्रंखलाओं के मध्य स्थित श्रीआम्बेश्वर धाम में औदिच्य गोरवाल ब्राहा्रण समाज का सामूहिक यज्ञोपवित अनुष्ठान एवं विवाह संस्कार महोत्सव का आयोजन हर्षोल्लास पुर्वक सम्पन्न हुआ।

श्री आम्बेश्वर भक्त मंडल के तत्वावधान में अभय आश्रम स्थित श्री आम्बेश्वर यज्ञशाला में पुज्य महामण्डेश्वर राजेश्वरानन्दजी भारती की पावन निश्रा में सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया गया। जिसमें सिरोही, पाली, जोधपुर, नाथद्वारा, कांकरोली जिले के विभिन्न स्थानों से पहुंचे 19 बटूकों को सामूहिक यज्ञोपवित उप नयन संस्कार संपन्न हुआ। काशी परस्थान की परंपरा निभाने के तहत इन सभी बटुकों ने वेदपाठी आचार्य पंडित आनन्द मुरलीधर ओझा एवं कई विद्वान ब्राहा्रणों के मुखारविन्द से स्फुरित वैदिक मंत्रोचार के बीच विप्र देव संस्कृति की शिक्षा ग्रहण करने का संकल्प लिया।

पंडित आचार्य द्वारा वेद पीठ से यज्ञोपवित की महिमा एवं इसके वैज्ञानिक महत्त्व के बारे में बताया। इस दौरान वैदिक पद्धति के अनुसार हवन हुआ तथा बटुकों को यज्ञोपवीत धारण करवाया गया। इससे पहले कार्यक्रम स्थल पर सुबह से ही उत्सव सा माहौल रहा। बड़ी संख्या में बटुकों के परिजन भी मौजूद रहे। वही यज्ञो वित संस्कार से पूर्व सामुहिक विवाहोत्तर कार्यक्रम आयोजन हुआ। जिसमें करीब चार जोडों का विवाह संस्कार सम्पन्न करवाया गया।

श्री आम्बेश्वर भक्त मंडल समिति द्वारा वैदिक परम्पराओं के संरक्षण एवं संवर्धन तथा युवाओं को इनसे रूबरू करवाने के उद्देश्य से पीछले दो वर्ष कोरोना काल को छोड दे तो तीस वर्षो से श्रृंखलाबद्ध तरीके से सामूहिक उप नयन संस्कार का आयोजन कर सनातन परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है। तथा संस्था द्वारा अब तक दौ सौ से अधिक बटुकों का यज्ञो वित करवाया जा चुका है। 

भिक्षाटन कर बटुकों ने किया गुरु को अर्पण-यज्ञो वीत संस्कार से पूर्व बटुकों का मुंडन करवाया गया। बाद में विधि-विधान से भगवान गणेश सहित देवताओं का पुजन, यज्ञवेदी एवं बटुकों को अधोवस्त्र के साथ माला पहनाकर बैठाया गया। इसके बाद विनियोग मंत्र ब्रह्मचर्य के पालन की शिक्षा के साथ विभिन्न धार्मिक आयोजन संपन्न हुए। गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के बाद बटुकों ने भिक्षा लेकर गुरु को र्अपण की। इसके बाद वेद पाठी आचार्य गुरु ने उनके कानों में गुरु मंत्र दिया।

क्या है यज्ञोपवीत संस्कार -वैदिक धर्म में यज्ञोपवीत दशम संस्कार है। इस संस्कार में बटुक को गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। यज्ञोपवीत का अर्थ है यज्ञ के समीप्या गुरु के समीप आना। यज्ञोपवीत एक तरह से बालक को यज्ञ करने का अधिकार देता है। शिक्षा ग्रहण करने के हले यानी, गुरु के आश्रम में भेजने से हले बच्चे का यज्ञोपवीत किया जाता था। भगवान रामचंद्र तथा कृष्ण का भी गुरुकुल भेजने से पहले यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था।

भव्य पांडाल में हर बटुको के लिए अलग व्यवस्था-19 बटुकों के यज्ञोपवीत संस्कार के लिए भव्य पांडाल में प्रत्येक बटुको के लिए अलग अलग यज्ञ वेदी व विद्वान ब्राह्मण पडितों की व्यवस्था थी, लेकिन उनकी मॉनिटरिग आचार्य वेद पाठी पंडित आनन्द मुरलीधर ओझा कर रहे थे। कार्यक्रमों में सभी ब्राह्मणों का उत्साह देखते ही बनता था। भारी गर्मी के बीच जहां हर किसी के पसीने छूट रहे थे वहीं मंत्रोच्चार द्वारा हाडियों से घिरे श्री आम्बेश्वर तीर्थधाम का माहौल भक्ति मय बना हुआ था। कार्यक्रम में पहुंचे अतिथियों ने बटुकों को आशीर्वाद दिया।

इन विद्वान आचार्यो की मौजूदगी में हुआ संस्कार-सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार को विद्वान आचार्यो की मौजूदगी में संपन्न कराया गया। जिसमें दी कभाई बुधिया पोसालिया, हिम्मतभाई शुक्ला पाडिव, वित्र दवे गोल, अभिषेक औझ़ा गोल, पुष्कर औझा वाटेरा आदि शामिल थे।

 प्राचीन काल में गुरूकुल में होते थे उप नयन संस्कार-वेदपाठी आचार्य ने बताया कि प्राचीन समय में ब्राह्मणों को शिक्षा उप नयन संस्कार के बाद ही दी जाती थी, लेकिन वर्तमान में यह व्यवस्था बदल गई है। उन्होंने कहा कि यज्ञोपवित के दौरान आचार्यों से मिली शिक्षा का पालन बटुकों को जीवन पर्यंत करना चाहिए। तभी संस्कार का महत्व परिलक्षित होगा। प्राचीन काल में उप नयन संस्कार गुरुकुल में ही संपन्न कराने का विधान रहा है। बदले समय में लोग अपने घरों और अन्य जगहों पर यह संस्कार संपन्न कराते हैं।

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