सनशाइन ऑफ इंडिया ने अपने काव्य संग्रह अलार्म के माध्यम से दिया पर्यावरण बचाने का संदेश*

 *सनशाइन ऑफ इंडिया ने अपने काव्य संग्रह अलार्म के माध्यम से दिया पर्यावरण बचाने का संदेश* 



*प्रकृति हमारी मां है इसकी रक्षा करना हमारा धर्म है*




जैसा कि हम सब जानते हैं कि विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया भर में जागरूकता बढ़ाने और प्रकृति माँ के महत्व का वर्णन करने के लिए मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना 1972 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्टॉकहोम सम्मेलन के समय की गई थी। पर्यावरण संरक्षण, एक प्रमुख मुद्दा बनाने के लिए यह दुनिया का पहला सम्मेलन था। विश्व पर्यावरण पहली बार वर्ष 1974 में मनाया गया था। प्रकृति के इसी महत्व को समझाने के लिए बताने के लिए सनशाइन ऑफ इंडिया ने अपना प्रथम काव्य संग्रह *अलार्म* 5 जून 2022 को प्रकाशित किया । जिसका संपादन श्रीमती रेखा हिसार प्रबंधक सनशाइन ऑफ इंडिया के प्रयासों से हुआ ।यह काव्य संग्रह प्रकृति प्रेमियों को नमन करता है जो दिन-रात प्रकृति की सेवा उसकी देखभाल में लगे रहते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां खुली हवा में सांस ले सकें। काव्य संग्रह लोगों के लिए घड़ी के अलार्म की तरह जगाने आया है विशेषकर उन लोगों को जो प्रकृति के अलार्म को सुनकर भी अनसुना करते जा रहे हैं। ठीक वैसे ही जो एक घड़ी के अलार्म बजने पर हम थोड़ी देर और सुस्ताना चाहते हैं और या फिर बंद करके सो जाते हैं और जब आंख खुलती है तब हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ शेष नहीं रहता । हमारा काव्य संग्रह अलार्म अपनी तरह से सबको जगाने के लिए आया है और बताने आया है कि प्रकृति जो कि हमारी मां है हम सब की संतान हैं और संतान होने के नाते हमारा इसके प्रति जो कर्तव्य बनता है उसे हमें निभाना चाहिए इसे प्रदूषण मुक्त और हरा भरा करके ना केवल हम इसको प्रसन्न करेंगे इसके साथ-साथ हमारे स्वयं के जीने की संभावना भी बढ़ जाएगी। पृथ्वी ने विभिन्न आपदाओं के द्वारा अपना अलार्म बार बार बजाया और तो और कोरोना भेज कर लगभग 2 वर्षों तक अपना सायरन भी बजाया जिसके कारण हम कई मामलों में पिछड़ गए हैं साथ साथ हमसे कई बिछड़ भी गए हैं। फिर भी हम लोग टस से मस नहीं हो रहे हैं और यही सोचकर जिंदगी काट रहे हैं कि जो भी होगा देखा जाएगा इस प्रवृत्ति को नहीं त्यागा तो हम सचमुच उठने से पहले उठ जाएंगे और फिर बाद में यह कहावत दोहराने वाला भी नहीं होगा ;जब चिड़िया चुग गई खेत अब पछताए होत क्या? इस काव्य संकलन में विभिन्न राज्यों की कवयित्रीयों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । रेडियो जॉकी व कवियत्री नमीता वर्मा महाराष्ट्र , कवियत्री पूर्णिमा छाबड़ा जैन , कवियत्री डॉ राजमती पोखरना सुराणा , कवियत्री डॉ अर्चना खंडेलवाल, कवियत्री शारदा जेतली राजस्थान। कवियत्री किरण भट्ट ,कवियत्री सुशीला दीक्षित नवीन, कवियत्री सोनिया भंडारी व कवियत्री रेखा हिसार हरियाणा, कवियत्री कनक लता जैन असम , कवियत्री अलका नीरज शुक्ला, कवियत्री अनीता श्रीवास्तव , कवियत्री अनुराधा तिवारी 'अनु' , कवियत्री उषा कत्याल मध्य प्रदेश कवियत्री शिप्रा शंकर बिहार कवियत्री शुम्पा संजय राय आदि ने अपनी कविताओं से सबको अपने-अपने ढंग से जगाने का प्रयास किया प्रकृति के प्रति जो हमारा कर्तव्य बनता है वह बताने का प्रयास किया ताकि हम सब एकजुट होकर पर्यावरण अर्थात हमारी प्रकृति के आंचल की रक्षा कर सकें जिसकी प्यार भरी छांव हमारी चारों ओर से रक्षा करती है अगर यही आंचल फट गया तो हमें कोई नहीं बचा सकता। एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग का खतरा तो दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की बीमारियां जिन्होंने हमें चारों तरफ से घेर रखा है यह सब हमारी ही देन हैं जिसका दोस्त हम हमेशा ईश्वर पर ही लगाते रहते हैं । भारत ने पहले भी कई बार इस दिशा में पहल कर चुका है तो हम सबके कदम अगर एक साथ एक दिशा में लगातार उठते रहे तो इस समस्या से हम जल्दी ही छुटकारा पा सकते हैं प्रकृति और जीवन को बचा कर शांति सद्भाव समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए अनुकूल माहौल बनाना हमारा पहला कर्तव्य बनता है तो आइए हम सब मिलकर इस कर्तव्य का निर्वाह करें 2 पौधे के नाम और पौधे अपने आने वाली पीढ़ी के नाम लगाएं पर हां पौधे लगाकर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हमारी ही है ताकि हम रहे ना रहे पर हमारे लगाए गए पौधे वृक्ष बन कर हमारे बच्चों का साया जरूर बनेंगे ।

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