होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा समाप्ति के उपरान्त रात्रि 1.10 से 1.58 तक श्रेष्ठ है।

 . *होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा समाप्ति के उपरान्त रात्रि 1.10 से 1.58 तक श्रेष्ठ है।


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          *17 मार्च हुताशनी पूर्णिमा गुरुवार को ढुण्डा राक्षसी की पूजा कर भद्रा रहित काल में होलिका दहन करना श्रेयस्कर होगा।*    

      *इस वर्ष होलिका दहन के समय निर्धारण में विभिन्न मत सामने आ रहे हैं, इनके शास्त्रीय औचित्य पर मन्थन आवश्यक है।*

1. प्रदोष काल- सामान्य रूप से फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को सायंकाल सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त लगभग अढ़ाई घंटे तक भद्रा रहित प्रदोष काल में होलिका दहन करना चाहिए। परन्तु इस वर्ष रात्रि 1.10 तक भद्रा है अतः ग्रामहित और राष्ट्रहित चाहने वालों को प्रदोषकाल में होलिका दहन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।

2. भद्रा पुच्छ काल रात्रि 9.02 बाद- भद्रा को पुरुषाकार मानते हुए धर्मशास्त्रकारों ने भद्रा के अंग-प्रत्यंग मुख-पुच्छ निर्धारित किये हैं। विशेष परिस्थितियों में भद्रा पुच्छ को होलिका दहन में शुभ माना गया है। शास्त्रों का मत है कि होलिका दहन भद्रा पुच्छ काल में तभी कल्याणकारी है जब स्थानीय समय दिन के बारह बजे से पहले भद्रा प्रारम्भ हो रही हो। जबकि भद्रा पूर्णिमा को दिनार्ध के बाद 1.30 बजे आ रही है और रात्रि 1.09 बजे तक रहेगी। साथ ही अगले दिन पूर्णिमा भी साढ़े तीन प्रहर से कम है। अतः भद्रा पुच्छ में होलिका दहन जनहित में समुचित नहीं है। भद्रा काल का निर्धारण पंचांग भेद से पृथक्-पृथक् है। 

       *विष्टि करण (भद्रा) के मान को त्रैराशिक विधि से चार भागों (प्रहरों) में विभाजित कर तीसरे प्रहर की अन्तिम तीन घटी भद्रा पुच्छ और चौथे प्रहर के प्रारम्भ की पांच घटी भद्रा मुख कहलाती हैं।*

        *इस वर्ष इस सिद्धांत की आवश्यकता नहीं है अगले वर्ष होलिका दहन निर्णय में और भी विकट समस्या आएगी तब भद्रा पुच्छ काल का उपयोग सार्थक सिद्ध होगा।*    

3. भद्रा समाप्ति के बाद एक मुहूर्त तक अर्थात् रात्रि 1.10 से 1.58 तक होलिका दहन किया जाना पूर्णतः शास्त्रीय एवं लोकहितकारक है।

*भद्रोत्तरम् भद्रान्ते वा होलिका दीपनम्* आदि आदेशों की पालना विश्व के सभी सनातनियों को करनी चाहिए।

       *विष्टि नाम के करण को ही भद्रा कहते हैं। सात चर और चार स्थिर करण होते हैं। एक तिथि में दो करण होते हैं, तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं। एक चान्द्रमास की आठ तिथियों में भद्रा (विष्टि करण) होती है। प्रत्येक पूर्णिमा का प्रारम्भ भद्रा काल से ही होता है इसीलिए होली रक्षाबंधन को भद्रा रहती ही है। स्थूल रूप से बारह घंटे का भद्रा काल होता है जिसमें शुभ कार्य पूर्णतया वर्जित हैं। शास्त्र कारों ने विवाहादि सामान्य मुहूर्तों में भद्रा दोष के अनेकों परिहार वाक्य भी लिखे हैं।*

        *भद्रामुख काल पांच घटियों का अशुभ और भद्रापुच्छ काल तीन घटियों का शुभ कहा गया है। आठों तिथियों के अलग अलग प्रहरों में भद्रा मुख-पुच्छ संहिता ग्रन्थों में अभिहित हैं।*

       इस वर्ष राक्षस नाम संवत्सर में होलिका दहन के समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र सिंह राशि का चन्द्रमा गंडयोग बवकरण और लाभ का चौघड़िया रहने से आने वाला मास राष्ट्र के सम्मान की अभिवृद्धि करने वाला सुभिक्षकारक और जनता के लिए समर्घता (सस्ताई) देने वाला रहेगा।

*विशेष-*

      इस वर्ष भद्रा पुच्छ काल में होलिका दहन न करने के शास्त्रीय आदेश विचारणीय हैं। 17 मार्च को चतुर्दशी के दिन दिनार्ध बाद पूर्णिमा आएगी और अगले दिन मध्याह्न में ही प्रतिपदा आ जाएगी।

      *१. परदिने प्रदोष भद्रा स्पर्शाभावे पूर्वदिने प्रदोषे भद्रासत्वे यदि पूर्णिमा परदिने सार्धत्रियामा ततोधिका वा...... निशीथोत्तरं भद्रासमाप्तौ भद्रामुखं त्यक्त्वा भद्रायामेव।*

        अर्थात् पहले दिन प्रदोषकाल में भद्रा हो, दूसरे दिन साढ़े तीन प्रहर या उससे अधिक पूर्णिमा हो तो निशीथ (अर्द्धरात्रि) बाद भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा में ही अर्थात् भद्रा पुच्छ में होलिका दहन किया जा सकता है।

          *इस बार ऐसी स्थिति नहीं है दूसरे दिन साढ़े तीन प्रहर पूर्णिमा भी नहीं है अतः भद्रा पुच्छ में होलिका दहन नहीं किया जा सकता है।*

अतः *भद्रोत्तरे - भद्रान्ते - भद्रासमाप्तौ ही ठीक है।*

       *२. दिनार्धात् परतोऽपि स्यात् फाल्गुनी पूर्णिमा यदि।*

       *रात्रौ भद्रावसाने तु होलिका दीप्यते तदा।।*

      अर्थात् दिनार्ध के बाद हुताशनी फाल्गुनी पूर्णिमा आती हो तो रात्रि में भद्रा के बाद ही होलिका दहन करना श्रेयस्कर होगा।

       *३. "भद्रा पुच्छे" का परिहार वाक्य तो पूर्णिमा की सम्पूर्ण रात्रि भद्रा दोष हो तो ग्रहण करना अधिक हितकर होगा। साथ ही वर्षों पहले भी हम लोगों ने रात के तीन चार बजे होली मनाई है उस समय क्या हमारे पूर्वज विद्वान नहीं थे। वे शास्त्र पारंगत थे उन्होंने कभी भी भद्रा में होलिका दहन नहीं किया। यदि पूरी रात भद्रा रही तो ही भद्रा पुच्छ काल में होलिका दहन किया।*

     *अतः इस बार अपने अपने क्षेत्र के मान्यता प्राप्त पंचांग के अनुसार १७ मार्च गुरुवार की रात एक बजे बाद जब भी भद्रा समाप्त हो जावे उसके बाद ही होलिका दहन करें।*

       स्वकीय राष्ट्र के रक्षार्थ भद्रा में कदापि होलिका दहन न करें। भद्रा में होलिका दहन करने से राष्ट्र में अनेकों संकट उत्पन्न होते हैं राजकीय उच्चाधिकारियों एवं सम्पन्न सम्मानित वर्ग को कष्ट होता है। अतः भद्रा शून्य काल में ही होलिका दहन करें। उक्तं च...

*भद्रायां दीपिता होली राष्ट्रभङ्गं करोति वै।*

*भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।*

*भद्राशून्यायां होलिकादाह:।*


     होलिका दाह के समय वायु प्रवाह से भी विशेष फल शास्त्रों में कहे हैं।...

*पूर्वे वायौ होलिकायां प्रजाभूपालयो: सुखम्।...*

       *अर्थात् अपने अपने नगर में होलिका दहन के समय यदि पूरब की ओर हवा का प्रवाह अर्थात् होली की झऴ (लौ) पूर्वी हो तो उस नगर के राजा और प्रजा दोनों सुखी रहते हैं। दक्षिण की ओर रुख हो तो नगर में दुर्भिक्ष और पलायन होता है। पश्चिम की ओर रुख हो तो पशुओं के लिए अच्छा हो। उत्तर की ओर हो तो अन्न धन की अधिकता हो। ईशान कोण की ओर रुख हो तो अनावृष्टि हो। अग्नि कोण की ओर रुख हो तो रोग फैलें। नैर्ऋत्य कोण की ओर रुख हो तो अतिवृष्टि हो। वायव्य कोण की ओर रुख हो तो प्राकृतिक आपदाओं की भरमार हो और सीधे ऊपर की ओर झऴ जाए तो राजा उच्च वर्ग और सम्पन्न लोगों को कष्ट होता है।*

           *पं. कौशल दत्त शर्मा*    

           *ज्योतिष शास्त्र विभागाध्यक्ष* 

           *राजकीय संस्कृत महाविद्यालय* 

           *नीमकाथाना राजस्थान*

          

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